जीवन-परिचय-पंत जी का जन्म सन् 1900 में अल्मोड़ा जिले के कौसानी गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम पं. गंगादत्त पंत तथा माता का नाम सरस्वती देवी था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव की पाठशाला में हुई। नवीं कक्षा तक गवर्नमेंट हाई स्कूल अल्मोड़ा में तथा हाई स्कूल तक जय नारायण हाई स्कूल काशी में अध्ययन किया। इण्टर में पड़ने के लिए ये इलाहाबाद आ गए। म्योर कालेज इलाहाबाद में इण्टर तक अध्ययन किया, परन्तु परीक्षा पास न कर सके। 1922 ई. में पढ़ना बंद हो जाने पर ये घर लौट गए। स्वतंत्र रूप से बंगाली, अंग्रेजी तथा संस्कृत साहित्य का अध्ययन किया।
प्रकृति की गोद, पर्वतीय सुरम्य वन स्थली में पले डुए पंत जी को बचपन से ही प्रकृति से अगाध अनुराग था। विद्यार्थी जीवन में ही ये सुन्दर रचनाएँ करते थे। संत साहित्य और रवीन्द्र साहित्य का इन पर बड़ा प्रभाव था। पंत जी का प्रारंभिक काव्य इन्हीं साहित्यिकों से प्रभावित था। पंत जी 1938 ई. में कालाकाँकर से प्रकाशित ‘रूपाभ’ नामक पत्र के संपादक रहे। आप आकाशवाणी केन्द्र प्रयाग में हिन्दी विभाग के अधिकारी भी रहे। पंत जी जीवन- भर अविवाहित रहे। हिन्दी साहित्य का दुर्भाग्य है कि सरस्वती का वरदपुत्र 28 दिसंबर, 1977 की मध्यरात्रि में इस मृत्युलोक को छोड्कर स्वर्गवासी हो गया।
रचनाएँ-वीणा, ग्रंथि, पल्लव, गुंजन, युगवाणी, उत्तरा, ग्राम्या, स्वर्ण किरण, स्वर्ण धूलि आदि पंत जी के काव्य ग्रन्थ हैं। इन्होंने जयोत्स्ना नामक एक नाटक भी लिखा है। कुछ कहानियाँ भी लिखी हैं। इस प्रकार पद्य और गद्य क्षेत्रों में पंत जी ने साहित्य सेवा की है, परन्तु इनका प्रमुख रूप कवि का ही है।
साहित्यिक विशेषताएँ-प्राकृतिक सौंदर्य के साथ ही पंत जी मानव सौंदर्य के भी कुशल चितेरे हैं। छायावादी दौर के उनके काव्य में रोमानी दृष्टि से मानवीय सौंदर्य का चित्रण है, तो प्रगतिवादी दौर मैं ग्रामीण जीवन के मानवीय सौंदर्य का यथार्थवादी चित्रण। कल्पनाशीलता के साथ-साथ रहस्यानुभूति और मानवतावादी दृष्टि उनके काव्य की मुखर विशेषताएँ हैं। युग परिवर्तन के साथ पंत जी की काव्य-चेतना बदलती रही है। पहले दौर में वे प्रकृति सौंदर्य से अभिभूत छायावादी कवि हैं, तो दूसरे दौर में मानव -सौंदर्य की ओर आकर्षित और समाजवादी आदर्शों से प्रेरित कवि। तीसरे दौर की उनकी कविता में नई कविता की कुछ प्रवृत्तियों के दर्शन होते हैं, तो अंतिम दौर में वे अरविंद दर्शन से प्रभावित कवि के रूप में सामने आते हैं।
काव्यगत विशेषताएँ: भाव पक्ष-
प्रकृति-प्रेम
“छोड़ दुमों की मृदु छाया, तोड़ प्रकृति से भी माया।बाले! तेरे बाल-जाल में कैसे उलझा दूँ लोचन।भूल अभी से इस जग को।”
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